धर्म-दर्शन

सफला एकादशी व्रत की विधि, कथा और महत्व





सफला एकादशी का व्रत पौष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है और यह व्रत समस्त कार्यों में सफल होने का फल देता है इसलिए इसे सफला एकादशी व्रत कहा जाता है। इस व्रत के पुण्य से मनुष्य को सभी कार्यों में सफलता मिलती है। सफला एकादशी व्रत को करने से सहस्त्र वर्ष के तपस्या से प्राप्त फल के समान पुण्य मिलता है।

सफला एकादशी का समय
इस बार सफला एकादशी का व्रत 22 दिसंबर को रखा जाएगा। सफला एकादशी तिथि 21 दिसंबर शाम 5.15 बजे शुरू हो रही है और 22 दिसंबर दोपहर 3.22 बजे यह समाप्त हो जाएगी। वहीं सफला एकादशी व्रत को खोलने का समय 23 दिसंबर सुबह 7.10 बजे से लेकर 9.14 मिनट तक होगा।

पूजा विधि
पुराणों के अनुसार सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। सफला एकादशी को सुबह उठकर अपने नित्य कार्यों से निवृत हो जायें और स्नान कर सवच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा गृह अथवा पूजा स्थल को शुद्ध कर लें। सभी पूजन सामग्री इकट्ठा कर लें। व्रत का संकल्प करके दीप, धूप, नारियल, फल, सुपारी, नींबू, अनार, सुंदर आंवला, लौंग, बेर, आम, पंचामृत (कच्चा दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण), अक्षत, तुलसी दल, चंदन- लाल, मिष्ठान आदि से भगवान श्री हरि की आराधना करनी चाहिए।

सफला एकादशी की कथा सुने अथवा सुनायें। पूजा करने बाद भगवान विष्णु की आरती कर भगवान को भोग लगाना चाहिए। भोग लगाने व प्रसाद वितरण के बाद ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए। स्वमं सुर्यास्त के बाद केवल फल ग्रहण करें। नमक का सेवन ना करें।

महत्व
इस व्रत में जो भी मनुष्य रात्रि भर जागरण तथा भजन कीर्तन विधिपूर्वक करता है उस मनुष्य के समस्त पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है एवं अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से पुण्य की प्राप्ति होती है जोकि कुरुक्षेत्र तीर्थ में सुर्य ग्रहण के समय स्नान करने से भी प्राप्त नहीं होता। इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और मनुष्य विष्णु लोक को जाता है।

व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार चंपावती नगर में राजा महिष्मत नाम का एक राजा था। राजा के 4 पुत्र थे। इनमें उनका बड़ा पुत्र बहुत ही पापी था। वह पिता के धन को कुकर्मों में नष्ट करता था। एक दिन दुखी होकर राजा ने उसे देश से बाहर निकाल दिया। देश निकाला होने के बाद भी उसकी लूटपाट की आदत नहीं छूटी और वह अब जंगल रहने लगा था।

इस दौरान पौष कृष्ण दशमी की रात में उस बहुत ठंड लगी, जिसके कारण वह सो नहीं सका। उसके काफी भूख भी लग रही थी। आधा दिन बीत गया और शाम होते-होते एकादशी की रात को वह भगवान को याद करते-करते सो गया। ऐसे में अनजाने में लुम्पक का सफला एकादशी का व्रत पूरा कर लिया। व्रत पूरा होने के बाद लुम्पक की नियत सुधर गई। उसके पिता ने उसे अपने देश में वापस बुलाकर राज पाठ उन्हें सौंप दिया और खुद राज तपस्या पर निकल गए।

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