धर्म-दर्शन

कालभैरव अष्टमी 2019: जानिए व्रत विधि, कथा, मंत्र और महत्व





इस साल 19 नवंबर को कालभैरव अष्टमी है। मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान शिव ने भैरव अवतार लिया था। हिन्दी पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरवाष्टमी कहा जाता है। इस दिन कालभैरव की विशेष पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति काल भैरव की भक्ति करता है, उसके सभी पाप मिट जाते हैं। काल भैरव की पूजा करने से राहु का प्रभाव भी शांत हो जाता है और काल भय भी समाप्त होता है।

यह है कथा
शिव महापुराण में वर्णित ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद में भैरव की उत्पत्ति से जुड़ा उल्लेख मिलता है। एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी से पूछा कि इस ब्रह्माण्ड का श्रेष्ठतम रचनाकर कौन है? इस सवाल के जवाब में ब्रह्माजी ने स्वयं को सबसे श्रेष्ठ बताया। ब्रह्माजी का उत्तर सुनने के बाद भगवान विष्णु उनके शब्दों में समाहित अहंकार और अति आत्मविश्वास से क्रोधित हो गए और दोनों मिलकर चारों वेदों के पास अपने सवाल का उत्तर करने के लिए गए।

सबसे पहले वे ऋग्वेद के पास पहुंचे। ऋग्वेद ने जब उनका जवाब सुना तो कहा शिव ही सबसे श्रेष्ठ हैं, वो सर्वशक्तिमान हैं और सभी जीव-जंतु उन्हीं में समाहित हैं। जब ये सवाल यजुर्वेद से पूछा गया तो उन्होंने उत्तर दिया यज्ञों के द्वारा हम जिसे पूजते हैं, वही सबसे श्रेष्ठ है और वो शिव के अलावा और कोई नहीं हो सकता।

सामवेद ने उत्तर दिया विभिन्न साधक और योगी जिसकी आराधना करते हैं वही सबसे श्रेष्ठ है और जो इस पूरे विश्व को नियंत्रित करता है, वो त्र्यंबकम यानि शिव है। अथर्ववेद ने कहा भक्ति मार्ग पर चलकर जिसे पाया जा सकता है, जो इंसानी जीवन को पाप मुक्त करता है, मनुष्य की सारी चिंताएं हरता है, वह शंकर ही सबसे श्रेष्ठ है।

चारों वेदों के उत्तर सुनने के बाद भी भगवान विष्णु और ब्रह्माजी का अहंकार शांत नहीं हुआ और वे उनके जवाबों पर जोर-जोर से हंसने लगे। इतने में ही वहां दिव्य प्रकाश के रूप में महादेव आ पहुंचे। शिव को देखकर ब्रह्मा का पांचवां सिर क्रोध की अग्नि में जलने लगा।

उसी वक्त भगवान शिव ने अपने अवतार की रचना की और उसे ‘काल’ नाम देकर कहा कि ये काल यानि मृत्यु का राजा है। वह काल या मृत्यु का राजा कोई और नहीं शिव का अवतार भैरव था। ब्रह्मा के क्रोध से जलते सिर को भैरव ने उनके धड़ से अलग कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भैरव से सभी तीर्थ स्थानों पर जाने के लिए कहा ताकि उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल सके।

भैरव के हाथ से ब्रह्मा का सिर गिर गया। काशी में जिस स्थान पर ब्रह्मा का कटा सिर गिरा था उसे कपाल मोचन तीर्थ कहा जाता है। उस दिन से लेकर अब तक काल भैरव स्थायी रूप से काशी में ही निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है जो भी व्यक्ति काशी यात्रा के लिए जाता है या वहां रहता है उसे कपाल मोचन तीर्थ अवश्य जाना चाहिए।

इस मंत्र का करें जप
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्, भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!

इस तरह करें व्रत
कालभैरव का व्रत करने के लिए सुबह स्नानदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें और उनके मंदिर में जाकर या मूर्ती रखकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए। व्रती पूरे दिन उपवास रखें और उनके मंत्रों का जप करें। इसके बाद रात के समय धूप, उड़द, दीप, काले तिल, सरसों के तेल का दिया बनाकर भगवान की आरती करें और कुत्ते को कुछ पकवान खिलाएं। माना जाता है कि कालभैरव का वाहन कुत्ता है। ऐसा करने से भगवान की कृपा आती है।

भैरव साधना का महत्व
-शिव पुराण में कहा हैं कि काल भैरव शंकर के ही रूप हैं और कालाष्टमी के दिन पूजा से घर में नकारत्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि का भय नहीं रहता।

-कालभैरव भगवान शिव के अंश होने के कारण भैरव अष्टमी पर बाबा भैरव की पूजा करने से सारे कष्ट मिट जाते है और जाने -अनजाने में हुए सारे पापों से मुक्ति मिल जाती हैं।

-ऐसी मान्यता हैं काल भैरव की पूजा करने और व्रत रखने से सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिल जाती हैं साथ ही भूत पिशाच का कभी डर नहीं रहता हैं। इस दिन काल भैरव को खुश करने के लिए काले कुत्ते को रोटी जरूर खिलानी चाहिए।

-यदि आप बाबा काल भैरव की कृपा चाहते है तो अष्टमी के दिन बाबा कालभैरव के मंदिर में जाकर उनकी प्रतिमा पर सिंदूर और तेल चढ़ाए और मूर्ति के सामने बैठकर काल भैरव मंत्र का जाप करें।

-बाबा कालभैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के अंश के रूप में हुई थी इसलिए इस दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ऊं नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। ऐसा करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

-भैरव आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती हैं। व्यक्ति में साहस का संचार होता हैं इनकी आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता हैं, रविवार और मंगलवार के दिन इनकी पूजा बहुत फलदायी हैं।

-भैरव जी का बहुत महत्व हैं यह दिशाओं के रक्षक और काशी के संरक्षक कहे जाते हैं। काल भैरव की शरण में जाने से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता हैं।

-ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति काशी में मृत्यु को प्राप्त करता हैं उसके पापो का भोग कालभैरव सोटे से पीटकर पूरा करते हैं। इस क्रिया को भैरव यातना कहा जाता हैं।

Share With