धर्म-दर्शन

आंवला नवमी: संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं करती हैं व्रत, जानें कथा और पूजा विधि





हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाई जाती है। इस दिन आंवला नवमी की कथा पढ़ने और सुनने का विधान है। इसे नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है। आंवला नवमी 2019 में 5 नवंबर को मनाई जाएगी। आंवला नवमी का महत्व बहुत अधिक है। स्त्रियां संतान की प्राप्ति और उनकी मंगल कामना के लिए यह व्रत पूरे विधि-विधान के साथ करती हैं।

इस दिन महिलाएं आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर संतान की प्राप्ति व उसकी रक्षा के लिए पूजा करती हैं। कहा जाता है कि भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल नवमी से लेकर कार्तिक पूर्ण्मा की तिथि तक आवंले के पेड पर निवास करते हैं। इसी के साथ आंवला नवमी के दिन आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने की भी प्रथा है और इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाने और उसे ग्रहण करने का विशेष महत्व माना जाता है।

आंवला नवमी की कथा-
प्राचीन समय की बात है काशी नगर में एक धर्मात्मा रहता था। जाति से वो वैश्य रहता था। उसकी कोई संतान ना थी। एक दिन वैश्य की पत्नी से पड़ोसन बोली यदि तुम लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो अवश्य ही तुम्हें पुत्र प्राप्ति होगी। जब यह बात वैश्य को पता चली तो उसने ऐसा करने से मना कर दिया।

लेकिन उसकी पत्नी ऐसा कदम उठाना चाहती थी इसलिए मौके की तलाश में लगी रही। एक बार मौका मिलने पर उसने एक कन्या को कुएं में गिराकर भगवान भैरो के नाम की बलि दे दी। इस बलि का परिणाम विपरीत हुआ।

पुत्र प्राप्ति की जगह उस स्त्री के पूरे शरीर में कोढ़ हो गया और लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर वैश्य की पत्नी ने अपने पति को अपने कर्म के बारे में सब बताया। वैश्य को अपनी पत्नी पर क्रोध आया और बोला गौवध, ब्राह्यण वध और बाल वध करने वाले के लिए संसार में कहीं जगह नहीं है।

पत्नी को आदेश दिया कि गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर और गंगा में स्नान कर। तभी इस कष्ट से छुटकारा पाया जा सकता है। वैश्य की पत्नी रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में गई। तब देवी गंगा ने उसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी।

वैश्य की पत्नी ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया और वह रोगमुक्त हो गई। इस व्रत और पूजा के फल के रूप में उसे कुछ दिनों बाद संतान की प्राप्ति हुई। तभी से हिंदू धर्म में इस व्रत का प्रचलन हो गया। उस समय से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है। और इस दिन आंवला खाने को शुभ माना जाने लगा

अक्षय नवमी का महत्व-
-अक्षय नवमी का पर्व आंवले से सम्बन्ध रखता है।
-इसी दिन कृष्ण ने कंस का वध भी किया था और धर्म की स्थापना की थी।
-आंवले को अमरता का फल भी कहा जाता है।
-इस दिन आंवले का सेवन करने से और आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

आंवला नवमी की पूजा विधि-
-प्रातः काल स्नान करके पूजा करने का संकल्प लें।
-प्रार्थना करें कि आंवले की पूजा से आपको सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का वरदान मिले।
-आंवले के वृक्ष के निकट पूर्व मुख होकर, उसमे जल डालें।
-वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें, और कपूर से आरती करें।
-वृक्ष के नीचे निर्धनों को भोजन कराएं, स्वयं भी भोजन करें।
-पूजन के बाद परिवार और संतान की सुख-समृद्धि की कामना करके पेड़ के नीचे बैठकर परिवार व मित्रों के साथ भोजन ग्रहण करना चाहिए।

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