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ध्यान : निद्रास्वप्न अर्थहीन, इन्हें कैसे रोकें?





डॉ. विकास मानव

व्यर्थ के सपनों को रोकना है तो विचारों को रोकना होगा। हमें लिखा जाता है : सर! रात में बहुत सपने आते है और स्वप्नदोष की समस्या से सात वर्ष से परेशान हूँ। कृपया बताएं सपनो को कैसे रोकें?

स्वप्नदोष कोई बीमारी नहीं है. स्वप्नदोष प्राकृतिक है। हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है और जो चीज हमारे हाथ में नहीं है उसके विषय में चिंता करने की कोई जरूरत ही नहीं रह जाती है!

सपने हमारे दिन के क्रियाकलापों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। दिन में जो बातें अधूरी रह जाती है, हमारा अचेतन मन उन्हें सपना दिखाकर पूरी करता है। दिन में की गई काम की अधूरी वासनाएं अचेतन मन हमें सपने में पूरी करने का अवसर देता है, जो स्वप्नदोष के रूप में हम पर प्रकट होती है।

स्वप्नदोष का पहला और महत्वपूर्ण कारण मानसिक है। स्वप्नदोष के प्रति हमारा चिंतित होना ही स्वप्नदोष का कारण बन जाता है। हमने इसे बिल्कुल ही बुरा समझा है। और हम इसका विरोध करते हैं कि यह न हो। हम जिस भी बात का विरोध करते हैं वह घटित होती है क्योंकि हम उसके प्रति सम्मोहित हो जाते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि “कहीं स्वप्नदोष घटित न हो जाए” इस बात का भय भी उसे घटाने में मदद करता है क्योंकि यह अचेतन मन से संबंधित है। रोज-रोज चिंता करने से यह बात अचेतन मन में प्रवेश कर जाती है।

स्वप्नदोष का संबंध काम की वासना या कामना से तो है ही, ज्यादातर संबंध तो हमारे भोजन से ही है। स्वप्नदोष में हमारे आहार की भी मुख्य भूमिका होती है। जो भोजन गरिष्ठ है, जो भोजन हमारे शरीर को उत्तेजित करता है, वह भी स्वप्नदोष का कारण बनता है।

हम अपनी शक्ति को, ताकत को बढ़ाने के लिए दूध-घीं और पौष्टिक आहार का उपयोग करते हैं। हम रोज रोज अपने शरीर में उर्जा डाल रहे हैं। वह उर्जा जरूरत से ज्यादा है। और हमारा मन हमेशा से ही काम-केंद्रित रहा है अतः अचेतन मन के लिए यह मार्ग उर्जा के निष्कासन के लिए सुगम होता है।

अतिरिक्त उर्जा का इसके द्वारा निकास होता है। रोज हम भोजन ले रहे हैं और रोज उर्जा निर्मित हो रही है! यदि ज्यादा ऊर्जा होगी तो भी अचेतन उसे इस मार्ग से बाहर निकालता है नहीं तो वह उर्जा तनाव पैदा करेगी। यह प्राकृतिक व्यवस्था है, इसलिए स्वप्नदोष से घबराने की जरूरत ही नहीं है।

हम जो ऊर्जा अपने शरीर को देते हैं वह उसकी जरूरत से ज्यादा है। वह अतिरिक्त उर्जा तनाव और सपने पैदा करती है। यदि हम अपने शरीर की उर्जा को खर्च नहीं करते हैं, श्रम नहीं करते हैं, पसीना नहीं निकालते हैं तो वह उर्जा हमें गहरी नींद में नहीं जाने देती है, हमारी नींद उथली ही रहती है और उथली नींद में सपने ज्यादा आते हैं।

गहरी नींद में सपने नहीं आते हैं क्योंकि गहरी नींद में हम अतिचेतन में, सब-कांसियस में प्रवेश कर जाते हैं जो सपनों के आगे का तल है।

सब-कांसियस के तल पर हम गहरी नींद में ही प्रवेश कर पाते हैं।

यदि हम अपनी ऊर्जा को चुका नहीं पाते हैं तो हमारा सब-कांसियस के तल पर प्रवेश नहीं हो पाता है और हम सपने वाली नींद में ही उलझे रहते हैं।

हमें यह बिल्कुल भी नहीं सोचना चाहिए कि ज्यादा श्रम करने, ज्यादा काम करने से हमारी शक्ति कम हो जाएगी? श्रम करेंगे, काम करेंगे तो हम गहरी नींद में सब-कांसियस के तल को छूएंगे तो खोई हुई ऊर्जा पुनः प्राप्त कर लेंगे और रोज रोज गहरी नींद में इस तल को छूएंगे तो हम और और शक्तिशाली और ताजा अनुभव करेंगे।

हमने महसूस किया है कि घर में आयोजन के समय दिन-रात काम करने के बाद थकने पर हमें जो स्वप्न रहित गहरी नींद आती है वह सब-कांसियस में प्रवेश से ही आती है। अतः हमें गहरी नींद के लिए थोड़ा परिश्रम करना होगा ताकि सपनों से मुक्त हुआ जा सके। गहरी नींद में पूरी तरह से न जा पाना भी सपनों का कारण बनता है।

सपनों को कैसे रोकें?

सपनों को रोकना मुश्किल ही नहीं असंभव भी है। क्योंकि जब तक हम जागते में विचारों को नहीं रोकते हैं, तब तक हम सपनों को नहीं रोक सकते हैं। जब हम जागे हुए होते हैं तब हमारे लिए विचारों को रोकना मुश्किल है! तो नींद में सपनों को रोकने की तो कल्पना भी नहीं कर सकते हैं?

जागते में हमारे मन में जो विचार चलते हैं, वे विचार ही नींद आने पर सपने बन जाते हैं। दिन में जितना ज्यादा हम विचारों के उहापोह में होंगे रात उतनी ही सपनों की उहापोह में बीतेगी। यह बात समानुपात में घटती है। अतः हमें रात सपनों की अपेक्षा दिन में विचारों को शिथिल करने के विषय में सोचना होगा।

यदि दिन में विचार कम होंगे तो रात में सपने भी कम होने लगेंगे। यदि हम दिन में विचारों के प्रति जागने लगते हैं तो रात को सपनों के प्रति भी जाग जाएंगे और जिस दिन विचारों के प्रति जाग जाएंगे उस दिन से विचारों के साथ ही सपने भी विदा होने लगेंगे।

-तो हम पहले यह समझते हैं कि दिन में विचारों को कैसे रोकें ? ताकि रात में सपनों को रोक सकें

जब हमारे शरीर में आक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है तो वह हमारे भीतर छुपी हुई हमारी उर्जा को सक्रिय करती है और हम स्वयं को विचार और तनाव से मुक्त अनुभव करते हैं। हमने महसूस किया है कि जब भी हमारे भीतर ज्यादा आक्सीजन आई है तब हमने अपने आप को स्वस्थ और तनावमुक्त महसूस किया है।

जब हम कोई खेल रहे थे और हमारे शरीर से पसीना टपक रहा था हमारा सारा ध्यान खेल पर था और हम निर्विचार और तनावमुक्त अनुभव कर रहे थे। खेलने के बाद जब हम बैठे थे तो हम अपने शरीर को हल्का अनुभव कर रहे थे। हम थकान अनुभव नहीं कर रहे थे, ताजगी अनुभव कर रहे थे।

जब हम काम करते हैं तो साथ में विचार भी करते हैं। और जब विचार करते हैं तो हमारा शरीर तनाव में होता है, और जब शरीर तनाव में होता है तो हमारी श्वास छाती तक ही आती है, जिससे हमारे भीतर बहुत ही कम आक्सीजन आ पाती है और यदि आक्सीजन कम आएगी तो हमारे भीतर की उर्जा सक्रिय नहीं हो पाएगी अतः हम तनाव और थकान अनुभव करते हैं।

लेकिन खेल खेलते समय हमारी श्वास नाभि तक जाती है, जिससे हमारे शरीर में आक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है, जो हमारे भीतर की उर्जा को सक्रिय करती है और हम तनावमुक्त अनुभव करते हैं।

यदि हम अपने काम को खेल बना लेते हैं तो हम काम करने के बाद भी थकेंगे नहीं और तनावमुक्त रहेंगे। जिस तरह से खेल में हमारा ध्यान अपने खेलने पर होता है उसी तरह से हमें अपना सारा ध्यान अपने काम में लगाना होगा, हम जो भी काम कर रहे हैं उसमें हमें अपने को पूरा देना होगा, चाहे वह चलने फिरने का काम हो या गाड़ी चला रहे हैं या अपने आफिस का काम कर रहे हैं।

यदि हमारा सारा ध्यान अपने काम करने पर होगा तो विचार नहीं आएंगे क्योंकि हमारा ध्यान जिस दिशा में होगा उर्जा उस दिशा में गति करेगी। हमारा ध्यान यदि मष्तिष्क में होगा तो उर्जा विचारों में गति करेगी और हमारा ध्यान यदि काम करने पर होगा तो उर्जा काम की दिशा में जाएगी और हमारे काम में कोई कमी नहीं होगी, हम काम को और भी बेहतर तरीके से कर पाएंगे।

हम अपना ध्यान विचारों से हटाकर अपने काम करने पर लगाते हैं तो विचारों के नहीं आने से हमारे शरीर से सारे तनाव हट जाते हैं और शरीर से तनाव हटते ही हमारी श्वास स्वतः ही गहरी हो नाभि तक जाने लगती है और हमारे शरीर को आक्सीजन मिलने लगती है जो हमारे काम पर ध्यान देने को और भी सुदृढ़ बनाएगी।

इस तरह से हम अपने काम पर ध्यान देकर दिन में विचारों को रोक सकते हैं। यदि दिन में विचार रूकेंगे तो विचारों की जो ऊर्जा बचेगी वह उर्जा सीधे काम पर ध्यान देने वाले को मिलेगी, देखने वाले को मिलेगी, साक्षी को मिलेगी और हमारा साक्षी होना और भी प्रगाढ़ होने लगेगा।

हमारी सजगता बढ़ेगी और साक्षी अनुभव में आने लगेगा। जो अपने काम पर ध्यान दे रहा है वही साक्षी है।

दिन में विचार नहीं होंगे तो रात को स्वप्न भी नहीं होंगे। क्योंकि विचार ही स्वप्न बनते हैं। दिन में हम अपने काम के प्रति ध्यानपूर्ण रहेंगे तो धीरे-धीरे हम रात को अपनी नींद के प्रति भी ध्यानपूर्ण रहेंगे।

रात को हम नींद में भी जागते हुए रहेंगे और यदि नींद में जाग जाएंगे तो सपने विदा हो जाएंगे और हमारा अचेतन मन में प्रवेश हो जाएगा, जिसे ध्यान में प्रवेश करना कहा गया है।

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