
*छगन लोन्हारे*
*उप निदेशक, जनसम्पर्क*
छत्तीसगढ़, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, घने जंगलों और विविध आदिवासी परंपराओं के लिए जाना जाता है। खासकर बस्तर क्षेत्र, जो दशकों तक नक्सलवाद की चपेट में रहा, अब विकास और शांति की राह पर अग्रसर है। जहाँ कभी गोलियों की गूँज सुनाई देती थी, अब वहाँ ढोल की थाप गूंज रही है। छत्तीसगढ़ सरकार ने मार्च 2026 तक बस्तर को नक्सल मुक्त बनाने का संकल्प लिया है और इस दिशा में एक निर्णायक लड़ाई जारी है।
बस्तर संभाग अपनी कला और संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहाँ हल्बी, गोड़ी, भतरी और डोलरी जैसी पारंपरिक बोलियों की समृद्ध विरासत है। अब जहाँ नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई ज़ोर पकड़ रही है, वहीं सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी पुनर्जीवित हो रही हैं। बस्तर ओलंपिक और बस्तर पंडुम जैसे आयोजन इस बदलाव के प्रमाण हैं, आयोजनों में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बस्तर अब शांति की ओर अग्रसर है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय का स्पष्ट संदेश है: “नक्सलियों के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई जारी है और उनकी कमर टूट चुकी है। जब तक छत्तीसगढ़ से नक्सली हिंसा समाप्त नहीं हो जाती, हम चैन से नहीं बैठेंगे।” इसी संकल्प को आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने भी 22 जून 2025 के अपने दौरे में स्पष्ट किया कि “इस बार बरसात में नक्सली चैन से नहीं बैठेंगे, ऑपरेशन जारी रहेगा।
“इस संकल्प का सबसे बड़ा उदाहरण 21 मई 2025 को अबूझमाड़ के जंगलों में देखने को मिला, जहाँ सुरक्षा बलों ने माओवादी नेता बासित राजू समेत 26 नक्सलियों को मार गिराया। तीन दशकों में यह पहली बार है कि महासचिव स्तर के किसी माओवादी को ढेर किया गया है। उस पर ₹3.25 करोड़ का इनाम था। इसके कुछ दिन बाद, 5 जून को सुरक्षा बलों ने ₹1 करोड़ के इनामी नक्सली सुधाकर को भी मार गिराया।
ये घटनाएँ इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि नक्सलवाद की कमर टूट चुकी है। राज्य में पिछले डेढ़ साल में 438 नक्सली मारे गए, 1515 गिरफ्तार हुए और 1476 ने आत्मसमर्पण किया। सुरक्षा बलों के साहस, रणनीति और समर्पण ने बस्तर को एक नए युग की दहलीज पर ला खड़ा किया है।
विकास की दिशा में एक उल्लेखनीय पहल “नियाद नेला नार (आपका अच्छा गाँव)” योजना है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली साबित हो रही है। नए सुरक्षा शिविरों के 5 किलोमीटर के दायरे में बसे गाँवों को 17 विभागों की 59 योजनाओं और 28 सामुदायिक सुविधाओं के माध्यम से बिजली, पानी, सड़क, अस्पताल, पुल, स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाएँ मिल रही हैं। इसके अलावा, नक्सल प्रभावित जिलों के छात्रों को तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के लिए ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है।
पुरवती गाँव का उदाहरण इसी बदलाव का प्रतीक है। सुकमा ज़िले का यह गाँव कभी नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था। यहाँ सुरक्षा शिविरों की स्थापना के बाद, सरकारी योजनाएँ यहाँ पहुँचने लगी हैं और बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराई जा रही हैं। यह वही गाँव है जहाँ कभी नक्सली हमलों की रणनीति बनती थी, लेकिन आज यह विकास की राह पर चल पड़ा है।
नक्सलियों ने तीन दशकों तक बस्तर को बंदूकों और हिंसा के ज़रिए बंधक बनाए रखा। उन्होंने भोले-भाले आदिवासियों को गुमराह किया, बच्चों से स्कूल छीने, बेटियों का अपहरण किया और परिवारों को बर्बादी के कगार पर पहुँचा दिया। इस हिंसा ने संसाधनों से भरपूर बस्तर को देश के सबसे पिछड़े इलाकों में गिना जाने पर मजबूर कर दिया। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है।
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में सरकार मज़बूत इरादे से काम कर रही है। सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी विकास की योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू किया जा रहा है। सुरक्षा बलों के शौर्य और सरकार की नीतिगत स्पष्टता ने साबित कर दिया है कि बस्तर अब नक्सलवाद के अंधेरे से निकलकर उजियारे की ओर बढ़ चुका है।
अब बस्तर में विकास की लहर दौड़ रही है। नक्सलियों की कमर टूट चुकी है और वह दिन दूर नहीं जब बस्तर पूरी तरह से नक्सल मुक्त हो जाएगा और देश के विकास मानचित्र पर नई ऊंचाइयों को छुएगा।