
जगत के कल्याण के लिए ही आचार्य शंकर अवतरित हुए : स्वामी भूमानंद सरस्वती
‘एकात्मता की प्रतिमा’ की द्वितीय वर्षगांठ पर ओंकारेश्वर में हुआ आयोजन
इन्दौर। आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश शासन द्वारा पुण्य नर्मदा नदी के पावन तट पर, आदि शंकराचार्य की गुरु और संन्यास भूमि पर स्थित अद्भुत और अलौकिक ‘एकात्म धाम’ में, सन्यास परंपरा के प्रतीक आचार्य शंकर की 108 फीट ऊँची बहुधातु की प्रतिमा ‘एकात्मता की प्रतिमा’ की स्थापना की द्वितीय वर्षगांठ पर कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस अवसर पर प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर आचार्य शंकर के विरचित स्तोत्रों और भाष्य का पारायण किया गया। साथ ही रुद्राभिषेक और संवाद कार्यक्रम भी संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में महामंडलेश्वर स्वामी नर्मदानंद बापजी, स्वामी भूमानंद सरस्वती सहित बड़ी संख्या में शंकर दूत और एकात्म धाम के अधिकारी उपस्थित रहे। इस दौरान सभी ने प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। मार्कण्डेय संन्यास आश्रम में आयोजित कार्यक्रम में श्री श्री ओंकारेश्वर के आचार्यों एवं वेद अध्ययनकर्ताओं ने भाष्य पारायण के साथ विधिवत् गुरु पूजन एवं रुद्राभिषेक किया।
महामंडलेश्वर स्वामी नर्मदानंद बापजी ने कहा कि जगत के कल्याण के लिए भगवान शंकराचार्य का अवतार हुआ। ओंकारेश्वर की पुण्य भूमि का सौभाग्य है कि आचार्य गुरु की खोज में यहाँ आएं। आज एकात्म धाम के माध्यम से विश्व में एकात्मता का संदेश यहीं से जन-जन तक पहुँच रहा है।
उन्होंने कहा कि भगवत्पाद भाष्यकार भगवान आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य ने अद्वैत एवं एकात्मता का उद्घोष करते हुए उपनिषद, गीता और ब्रह्मसूत्र पर भाष्य रचे तथा चार मठों की स्थापना से भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बाँधा। पूरे विश्व को शांति, समाधान और एकात्मकता प्रदान करने की सामर्थ्य अद्वैत दर्शन में निहित है।
स्वामी भूमानंद सरस्वती ने कहा कि अद्वैत एक जीवन दृष्टि है। आज पुनः ओंकार की तपोभूमि से अद्वैत की सर्वत्र अनुगूँज सुनाई दे रही है। समस्त समस्याओं की जड़ भेदभाव है और उसका समाधान अद्वैत वेदांत में निहित है।
ब्रह्मचारी रमण चैतन्य ने कहा कि आचार्य शंकर केवल ज्ञानी ही नहीं, परम भक्त भी थे। उन्होंने जगन्नाथ अष्टकम्, नर्मदा स्तोत्र, गंगा स्तोत्र जैसे स्तोत्रों की रचना कर भक्ति एवं उपासना को जीवंत रखा।
शंकर विरचित स्त्रोतों से गूंजा ओंकार पर्वत
कार्यक्रम में शंकर दूतों ने तोटकाष्टकम्, नर्मदा अष्टक, गंगा स्तोत्र जैसे विभिन्न आचार्य विरचित स्तोत्रों का गायन किया। इस दौरान ‘‘विदिताखिल शास्त्र सुधा जलधे, महितोपनिषत्-कथितार्थ निधे, हृदये कलये विमलं चरणं, भव शंकर देशिक मे शरणम्’’ मंत्रोच्चारण से आयोजन और भी दिव्य एवं भक्ति-पूर्ण बना। इनके माध्यम से उपस्थित श्रद्धालुओं और विद्वानों ने भगवत्पाद आचार्य की भक्ति, ज्ञान और उपासना के प्रति गहन श्रद्धा का अनुभव किया।
एकात्मता का वैश्विक केंद्र ‘एकात्म धाम’
ज्ञात हो कि आचार्य शंकर ने भारतवर्ष का भ्रमण कर संपूर्ण राष्ट्र को सार्वभौमिक एकात्मता से आलोकित किया। अद्वैत वेदान्त दर्शन के शिरोमणि, सनातन वैदिक धर्म के पुनरुद्धारक एवं सांस्कृतिक एकता के देवदूत श्री शंकर भगवत्पाद का जीवन एवं दर्शन अनंत वर्षों तक संपूर्ण विश्व का पाथेय बने, इस संकल्प के साथ आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग, आचार्य की संन्यास एवं ज्ञान भूमि ‘ओंकारेश्वर’ में भव्य एवं दिव्य ‘एकात्म धाम’ के निर्माण के लिए संकल्पित है।
एकात्म धाम के अंतर्गत प्रथम चरण में आचार्य शंकर की 108 फीट की ‘एकात्मता की मूर्ति’ (Statue of Oneness) की स्थापना की गई है। वहीं द्वितीय चरण में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मार्गदर्शन में आचार्य शंकर के जीवन और दर्शन पर केंद्रित अद्वैत लोक संग्रहालय का निर्माण 2,195 करोड़ रुपए की लागत से किया जा रहा है।