
लेखिका- रजनी
पहलगाम हमला और राष्ट्रीय परिदृश्य:- बात केवल समाज की नहीं है ,यह हमला देश के उन तमाम लोगों के मनोभावों को उजागर कर रहा है जो सालों से दबे- छिपे थे ,यह हमला शहर देश में घुस -पेटियों को उजागर करने का अचूक मुद्दा बन पड़ा है ।बहरहाल बात देश के आंतरिक मामलों की की जाए तो यहां का हर नागरिक भविष्य के उन्मुख अनदेखी को पहचान कर पहले ही दैनिक जरूरत की वस्तुएं और आमदनी को संजौने लगा है।
जिससे अर्थव्यवस्था दौड़ पड़ी है, युद्ध पश्चात मंदी के भय से आम व्यक्ति राशन अन्य सुखी सुविधाओं की वस्तुओं को खरीद रहा है,और नौकरी पेशा कर्मठ होकर कार्य कर रहा है साथ ही जो सालों से नए अन्वेक्षण कार्य चल रहे हैं उन्हें प्रदर्शित होने का मौका मिल गया है खैर उन मुद्दों पर भी नजर जाती है जो केवल सैन्य शक्ति सारी जिंदगी केवल अभ्यास पर ही टिकी थी वह व्यावहारिक रूप प्रकार प्रदर्शित होगी
चहुंओर ढील-पोल की समाप्ति होकर केवल योजना का अंजाम देने की तत्परता जुड़ गई है वही जो पिछड़ा राजनीति पक्ष है उसे भी बोलने का अवसर प्रदान हो गया है साथी जर्नल और मीडिया को नया मुद्दा मिल गया है रोजाना की चहल-पहल को प्रदर्शित करते हुए।
कुछ मुकबधिर भी बोल पड़े हैं जो केवल सत्ता में विराजित है,और सत्ता में ही अंतिम सांस लेंगे ,बिना किसी विरोध और दबाव के, जो ठेका लेकर आए हैं सत्ता को संभालने का, जिन्हे देश संभालने का और सोते रहने का जिम्मा नागरिकों द्वारा सोपा गया है वह भी थोड़ी करवट लेकर बोल पड़ते है।